हर मौसम खेतो में सुनने को मिलती है भारत की पारंपरिक संस्कार संगीत
हरेंद्र दुबे गोरखपुर
भारत को क्यों संस्कारी देश कहा जाता है। उसकी झलक हर सीजन में देखने को मिलता है। जितने महीने उतनी विधा देखने को मिलता है ।फागुन से शुरू होता है। और सावन में खत्म होता है। फागुन में होली की गीत और चईत,में चैता गीत, शादी समारोह में गारी गीत के माध्यम से महिला हर मांगलिक कार्यक्रम को सजाने का जहा कार्य करती है।तो वही आषाढ़ के महीने से ही सावन की गीत कजरी खेतो से लेकर गांव के झूले पर सुनाई देती है चारो तरफ हरियाली में महिलाए सावन गीत ,
अरे रामा चढ़े सावन ललकारी, चुवेला ओरियानी ए रामा
कईसे खेले जइब सावन मां कजारिया, बदरिया घेरे आई ननदों
पुरानी परंपरा को सजाने में ग्रामीण क्षेत्र की खेतो में महिलाए धान के रोपाई करते गीत सुनने को मिलता है
देश हर प्रदेश में अपने अपने भाषा में हर मौसम में हर प्रकार के परंपरा का निर्वहन करते दिखाई देते हैं आप देख सकते है को खेत में धान की गड़ाई कर रही महिलाएं गीतों को गाती हुई धान की गड़ाई कर रही है इसी तरह की गीत बिहार,बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी अपने-अपने विधा के अनुसार अपने लोक गीत को गाते गुनगुनाते खेती बारी करते नजर आते है। लोगो ने काम करते क्या कहती है लोगो की क्या राय है क्या उम्मीद है एक नजर डालते है सुनते है
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