छठ गीत शुरू की गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर, छठ व्रती शारदा सिन्हा के आत्मा शांति की कर रह छठ मईया से अरज जोड़ी निहोरा
हरेंद्र दुबे,, गोरखपुर
स्वर कोकिला शारदा सिन्हा का निधन,शोक में डूबे छठ व्रती,छठ मईया से आत्मा शान्ति की व्रती कर रही निहोरा
उजर बगुला बिन पिपरौ न सोहे
कोयल बिन बगिया न सोहे राजा
इस तरह का कर्णप्रिय मधुर गीत गाने वाली शारदा सिन्हा अब इस दुनिया में नहीं रहीं। पांच अक्तूबर 2024 को उन्होंने दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली।
लेकिन वह अपने गानों में इस दुनिया में सदा रहेंगी। भोजपुरी ही नहीं अवधी और हिन्दी में भी बराबर की ख्याति हासिल करने वाली इस स्वर कोकिला के बिना अब गायन क्षेत्र कहां सोहने वाला है। वैसे ही जैसे ही उन्होंने गाया है की कोयल बिन बगिया न सोहे राजा।
चूड़ियों से मारि मारि के अपने बलमा को जगावे संवार गोरिया…
जैसा गीत गाने वाली गायिका ने अपने बलमा के निधन के एक माह बाद ही बीमार पड़ीं और शरीर को त्याग दिया।
इन दोनों ही गानों को न जाने कितनी बार सुन सुनकर मेरे जैसे न जाने कितने लोग बड़े हुए और बूढ़ा होकर मिट खप गए। नई पीढ़ी के युवकों और युवतियों को भले ही आज के भोजपुरी गायक और गायिका पसंद हों लेकिन हमारी पीढ़ी को तो शारदा सिन्हा के ही गाने पसंद थे। उनके गानों में सुर ताल और लय ही नहीं गजब की मधुरता थी। प्रकृति और मानव संस्कृति की एकात्मकता और रागात्मकता उनके गीतों को ख़ास बनाती थी।
एक गीत है जिसमें कुदरत और मानव रिश्ते की अनोखी जुगलबंदी दिखती है!
अमवा महुवा के झूमे डलिया
तनी ताका न बालामुआ हमार ओरिया
कोयली के बोली सुन मन बौरायी गाईले
नाही आए हमरो बलम रसिया
तनी ताका न बलमुआ हमार ओरिया
उजर बगुला बिन पिपरा न सोहे कोयल बिन बगिया न सोहे गीत में प्रकृति की सुंदरता के साथ जीवों के साथ उसके संबंधों को शानदार तरीक़े से उकेरा गया है। इस गाने को हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। जब भी इसके बोल कानों तक पहुंचे हैं मन बिना गुगुनाये नहीं माना है।
इस गाने में आगे पारिवारिक रिश्तों का ग़ज़ब का वर्णन किया गया है!
भाई भतीजा बिन नयीहर न सोहे
देवर बिन अंगना न सोहे मोहे राजा
सास ससुर बिन ससुरो न सोहे
सैया रे बिन सेजिया न सोहे राजा
लाल सिंदूर बिनु मंगिया न सोहे
बालक बिनु गोदिया न सोहे राजा
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